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अब ईश्वर नही है……

Jeevan's Blog
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“क्या सचमुच ईश्वर है” इस मुद्दे पर रोज चर्चा होती. यदि मैं कहूँ इश्वर है तो मुझे शायद मुर्ख कहा जायेगा, क्योंकि मैं कहूँगा वृक्ष, इश्वर है तो विद्वान लोग कहेंगे, मुर्ख हैं आप जो वृक्ष को भगवन कह रहे हैं? मैं कहूँगा सूर्य भगवान है, तो विद्वान लोग कहेंगे, मुर्ख हैं आप, वह तो मात्र एक ब्रहमांड का ग्रह है. यह सही है की वृक्ष एक वृक्ष है, सूर्य एक ग्रह है. यह समझाने की जरुरत नहीं है कि हमारे पूर्वज पेड़ को भगवान क्यों कहा, सूर्य को भगवान क्यों कहा. हो सकता है पूर्वज लोग हमारे विद्वान लोगों की तरह यह नहीं जानते होंगे कि पेड़ तो बीज से उगते हैं. सूर्य के बारे में यह नहीं जानते होंगे कि सूर्य तो एक मात्र ग्रह है उसके भी कई उपग्रह हैं. इसी लिए उसे भगवान मान बैठे. ईश्वर शब्द या भगवान शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने और क्यों किया यह शोध का विषय है. मेरे विचार से जब हमारे पूर्वज, जिस समय उसे रहने को घर नहीं होगा उस समय सूर्य की तेज धुप से बचने का उपाय खोजा होगा और उसे वृक्ष मिल गया होगा तो वृक्ष को भगवान मान लिया होगा. अँधेरे से डर लगता होगा और सूर्य उगने पर वह डर दूर हो जाता होगा इसी लिए सूर्य को भगवान मान लिया होगा. अभी जब सच्चाई सब जान चुके हैं तो वृक्ष को, सूर्य को भगवान मानने में शर्म हो रही है. अभी भी हमारे तथाकथित विद्वान लोग जब किसी घोर सकंट में पड़ते हैं और कोई उपाय उसके पास नहीं होता है तो किसी अज्ञात शक्ति को पुकारने लगते हैं, यदि उनके पास संकट से उबरने का उपाय मिल जाय तो फिर किसी अज्ञात शक्ति को पुकारने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी और भगवान को मानने से भी इंकार करेंगे. सचाई भी यही है की भगवान की आवस्यकता निहसहय, निर्बल एवं कमजोर लोगों को पड़ती है. मेरे समझ से जो कोई हमें संकट से उबार ले वही भगवान है यदि मुझे कोई संकट ही नहीं हो तो मैं इश्वर को क्यों मानूं?

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