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हर साल कि तरह इस बार भी होली आ हीं गयी। सभी होली के रंग में आ गए हैं, कोई कह रहा है कि इस बार होली मोबील से खेलेंगे, कोई कह है रहा है डिस्टेम्पर से होली खेलेंगे। कोई शायद यह नहीं जनता है कि इसके कितने ख़राब परिणाम होते हैं। एक होली कि घटना याद है मुझे मेरे पिताजी होली कि छुट्टी में सायकिल घर आ रहे थे, होली के रंग में डूबे हुए कुछ युवक मेरे पिताजी को सड़क के किनारे कांटेदार झड़ी में धकेल दिया और जोर जोर से होली है …… होली है …… चिल्लाने लगा किसी ने मेरे पिताजी को उस झड़ी से निकलने का साहस नहीं दिखाया। तब किसी तरह मुस्किल से मेरे पिताजी उस कांटेदार झड़ी से अपने को और अपने साईकिल को निकल पाए। घर आकर इतने दुखी हुए कि आज तक मेरे पिताजी होली में घर से बहार नहीं निकलते हैं। यदि इसी तरह से होली का आनंद लिया जाता रहा तो होली का रंग चढ़ने के बजाय फींका हो जायेगा। ऐसा बिलकुल न होने दें, इससे कुंठाएं बढ़ेगी और होली के नाम से लोग डरेंगे।
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